मैं नन्हा फ़नकार हूँ...।।
दुनिया से तो पराया हूँ मैं,
कभी खुद ने भी अपनाया नहीं।
फिर भी इस बेगानी दुनिया में,
मैं, मेरी माँ का राजकुमार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
अपने स्वभाव में जीता हूँ,
ना औरों से लेता-देता हूँ।
अपने ही अंदर बजने वाला,
मैं कोई राग-मल्हार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
परिवार के बोझ तले दबा हूँ,
समाज की कुरीतियों से बँधा हूँ।
पर अपनी ही दबी आवाज़ की,
मैं एक नई झंकार हूँ... मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
ये दुनिया तो आती-जाती है,
जहाँ मतलब के सब साथी हैं।
इस लोभ-द्वेष भरी दुनिया में,
मैं करूणा की एक पुकार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
काम, क्रोध, लोभ, मोह से अछूती,
एक नई दुनिया हमें बनानी है।
अमन-चैन ला दूँगा हर तरफ़,
मैं गंगा-सी निर्मल धार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
नई सुबह की नई उमंग हूँ,
मैं एक नया सा विचार हूँ।
क्रांति का नया बीज हूँ मैं,
मैं धरती का उद्गार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
मतलब अपने मतलब से इनको,
बाकी दुनिया बेमतलब की है।
जो बेमतलब कह दूँ मतलब को,
तो मैं इनके लिए बेकार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
सच का सच्चा साथी हूँ मैं,
झूठ को इक पल साथ नहीं।
हो रहा असहनीय दुनिया को,
मैं कोई जलता अंगार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।!
सच्चाई के काँटों पर चलकर,
हमको नई राहें बनानी हैं।
मारकर ठोकर झूठ को सदा,
बन रहा सच की दरकार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
बंद करो अब हँसना,तुम इन झूठी बातों पर,
बंद करो अब बँटना, धर्म और जातों पर।
फेर लो मुँह अब इन, गहरी काली रातों से,
मैं भोर-सा उगता हुआ, एक नया संसार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
माँ-बाबा ने सींचा है, तुमको खून-पसीने से,
क्यों बनते हो कायर तुम, क्यों डरते हो जीने से।
उठो, चलो और कह दो , अब इस जग से तुम,
मैं नव-भारत में पनपा, नव-प्रदीप्त संस्कार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
By Hansraj deepak
Also read - पत्रकारीता स्वतन्त्रता सूचकांक के अनुसार भारत में पत्रकारीता स्वतन्त्रता का स्तर गिरा)
दुनिया से तो पराया हूँ मैं,
कभी खुद ने भी अपनाया नहीं।
फिर भी इस बेगानी दुनिया में,
मैं, मेरी माँ का राजकुमार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
अपने स्वभाव में जीता हूँ,
ना औरों से लेता-देता हूँ।
अपने ही अंदर बजने वाला,
मैं कोई राग-मल्हार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
परिवार के बोझ तले दबा हूँ,
समाज की कुरीतियों से बँधा हूँ।
पर अपनी ही दबी आवाज़ की,
मैं एक नई झंकार हूँ... मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
ये दुनिया तो आती-जाती है,
जहाँ मतलब के सब साथी हैं।
इस लोभ-द्वेष भरी दुनिया में,
मैं करूणा की एक पुकार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
काम, क्रोध, लोभ, मोह से अछूती,
एक नई दुनिया हमें बनानी है।
अमन-चैन ला दूँगा हर तरफ़,
मैं गंगा-सी निर्मल धार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
नई सुबह की नई उमंग हूँ,
मैं एक नया सा विचार हूँ।
क्रांति का नया बीज हूँ मैं,
मैं धरती का उद्गार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
मतलब अपने मतलब से इनको,
बाकी दुनिया बेमतलब की है।
जो बेमतलब कह दूँ मतलब को,
तो मैं इनके लिए बेकार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
सच का सच्चा साथी हूँ मैं,
झूठ को इक पल साथ नहीं।
हो रहा असहनीय दुनिया को,
मैं कोई जलता अंगार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।!
सच्चाई के काँटों पर चलकर,
हमको नई राहें बनानी हैं।
मारकर ठोकर झूठ को सदा,
बन रहा सच की दरकार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
बंद करो अब हँसना,तुम इन झूठी बातों पर,
बंद करो अब बँटना, धर्म और जातों पर।
फेर लो मुँह अब इन, गहरी काली रातों से,
मैं भोर-सा उगता हुआ, एक नया संसार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
माँ-बाबा ने सींचा है, तुमको खून-पसीने से,
क्यों बनते हो कायर तुम, क्यों डरते हो जीने से।
उठो, चलो और कह दो , अब इस जग से तुम,
मैं नव-भारत में पनपा, नव-प्रदीप्त संस्कार हूँ.. मैं नन्हा फ़नकार हूँ।।
By Hansraj deepak
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