माउंट आबू यात्रा, Mount Abu Travel

होली का अगला दिन .
21 मार्च 2019
कुछ यात्रा ऐसे भी होती है जो बिना सोचे समझे होती है बिना किसी योजना के ओर उनकी सबसे अच्छी बात यह होती है कि वो हमे जीवन भर याद रहती है.
अब यह यात्रा भी कुछ ऐसी ही थी सोचा कंही ओर जाने का चले कंही ओर..
सुबह 9 बजे हमारा प्लान था kusma चलना है होली खेलने के बाद  दोपहर में निकलेंगे ओर वहा शिव मंदिर जाएंगे  भोले शंकर के दर्शन करेंगे ओर वही दोपहर का खाना बनाएंगे और भजन करेंगे .
कहते हैं ना कि आपके सोचने से सब नहीं होता, होता वही है जो भोले शंकर चाहते हैं . हम आधे रास्ते पहुंच गए थे कि प्लान बदल गया माउंट आबू चलना है .
 अब आधे हा आधे ना, लेकिन फिर हमारा काफिला निकल गया माउंट आबू की ओर.
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nakki lake mount abu 

अब आपको माउंट आबू के बारे में थोड़ी सी जानकारी दे दे .. 



यह राजस्थान का इकलौता ‘हिल स्टेशन’ है, दक्षिणी राजस्थान के सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटा यह ‘हिल स्टेशन’ 1600 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर बसा हुआ है। माउंट आबू कभी राजस्थान की जबरदस्त गरमी से बदहाल पूर्व राजघरानों के सदस्यों का ‘समर-रिसोर्ट’ हुआ करता था। अभी भी कंही कंही उनके पुराने छोटे से महल हमे दिख ही जाते है. इससे जुड़ी कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं ने इसे एक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी विख्यात कर दिया है।

यंहा के पहाड़ों ओर वातावरण में एक अनोखी सी महक है .


जब यात्रा की जाती है तो राह फंतासी सी लगती है। सूर्योदय किस तरह से हो सकता है और सूर्यास्त केवल उन्मत्त मनुष्यों को कैसे छोड़ सकता है, इसका पूर्ण अर्थ केवल माउंट आबू में और इसी तरह के स्थान पर होता है।

हम अब नागिन सा रास्ते का आनंद लेते हुए 4 बजे माउंट आबू पहुंच गए . वहा फॉरेस्ट विभाग में हमारे मित्र नरेंद्र ने चाय नाश्ते की व्यवस्था कर रखी थी ओर हम दो गाड़ी में सवार होकर आए 10 जने भूखे भेड़ियों से टूट पड़े.. 

हमारे पास ज्यादा समय था नहीं माउंट भ्रमण का इसलिये सोचा चलो Sunset point चलते हैं वहा थोड़ा बैठेंगे फिर वापिस निकल लेंगे . वैसे तो वहा आपको खड़े रहने की भी जगह नहीं मिलेगी अगर आप लेट हो गए तो.. वहा जाने के लिए हाथ गाड़ी या घोड़े का इस्तेमाल कर सकते हैं। हम तो आपको पेडल ही यात्रा करने की सहल देंगे। जिससे की आप प्रकृति की सुंदरता का पूरा फायदा ले सके।


वन विभाग ने Sunset पॉइंट को काफ़ी खूबसूरत बना रखा है और सूर्यास्त देखने के लिए अलग अलग जगह 4-5 टावर भी बना रखे हैं . 
चूँकि हम यंहा जल्दी आ गए थे तो वहा भीड़ भी कम थी ओर धूप भी तेज . हम भी थोड़ी देर प्रकृति का आनंद लेते रहे . 
Sunset point 


वास्तव में यंहा सूर्य को धरती माँ के गले लगना एक एक युग का सा आभाष कराता है बस देखते रहे ओर यह पल कभी कम ना हो . लेकिन हमे यह  भाग्य आज नहीं मिलने वाला था . सूर्य अपने समय से पहले असत् नहीं होने वाले थे ओर हमारे पास इतना वक़्त नहीं था कि हम इंतजार करे . 
सायद भोलेनाथ की कुछ ओर ही इच्छा थी एकदम प्लान बनाया गया कि वहा से एक ट्रेकिंग होती है जो नक्की झील के किनारे निकलती है तो उसका आनंद लिया जाए . बात यह थी कि उस ट्रेकिंग का लुफ्त मैंने पहले उठाया हुआ था जो कि बारिश के मौसम में की गयी थी . उस समय हमने यह ट्रेकिंग नक्की झील से सुरू की थी ओर Sunset पॉइंट पे ख़तम की थी. उस समय बारिश का मौसम था तो बारिश में ट्रेकिंग का आनंद सबसे ज्यादा होता है ओर प्राकृतिक सौंदर्य भी बहुत होता है इस कारण पहले हमे समय भी 2 घंटे जैसा लगा था. नक्की झील से Sunset point के ट्रेकिंग का यह रास्ता 2-2.5kilomiter जितना है . 

Tracking way
निकल पड़ा हमारा काफिला जंगल में होते हुए एक नए अनुभव की ओर . सुनसान रास्ता, ना कोई आवाज, ना कोई इंसान . बस चलते रहो. गर्मियों में पेड़ सुख से जाते हैं तो रास्ता भी साफ दिखाई दे रहा था बाकी अगर बारिश में आप जाओ तो दिल की धड़कन जोर जोर से चलती है ना जाने किधर से कोई जंगली जानवर निकल आए . गर्मी के दिनों में भालू नीचे की तरफ़ चले जाते हैं तो उनका मिलना मुश्किल है हाँ बारिश में आपको भालू , जंगली मुर्गे, पैंथर कुछ भी मिल सकता है . सावधानी के लिए हमने भी एक सुखी लकड़ी को उपयोग योग्य बनाया, अगर कोई वन्य जीव आ जाए तो बचाव के लिए. मस्ती में हम चल रहे थे कि अचानक सामने एक महात्मा आ गए. मन में एक विचार आया कि यह एकदम सामने कैसे आ गए जबकि रास्ता हमें साफ दिखाई दे रहा था. महात्मा जी हमारे देखते देखते एक चट्टान पर अपना कम्बल बिछा कर आराम करने लग गए . अब सिद्ध पुरुष के दर्शन करना ओर आशीर्वाद लेना हमारा सो भाग्य सा हो गया . मानो शिव भोले के दर्शन हो गए हो . हम बाबा के चरणों में जा बैठे ओर हम थोड़ा ग्यान लेने का प्रयास करने लगे तो बाबा ने कहा कि ऊपर पहाड़ की तरफ़ देखो में वहा से आया हूँ ओर एक पताका जो लहरा रही थी उसकी ओर इशारा किया. उन्होंने बताया कि ऊपर एक छोटा सा शिवलिंग ओर एक पानी का कुंड है जिसमें पानी पहाड़ों से हमेसा आता रहता है ओर वो कभी खाली नहीं होता . बाबा से हमने वहा का रास्ता पूछा तो उन्होने कहा कि थोड़ा आगे देखो वहा पर है रास्ता सीढ़ियाँ है बनी हुयी आश्चर्य की बात यह थी कि वो हमे दिखाई नहीं दे रही थी . हम बाबा के कहे मुताबिक पांच छह कदम आगे जाने पर हमें वास्तव में सीढ़ियाँ दिखाई दे रही थी . जय भोले जय भोले करते हम उन पर चलने लगे. 8-10 सीढ़ियाँ चलने के आगे एक छोटा सा चबूतरा सा बना हुआ था ओर वहा पूजा भी होती है ऐसा लग रहा था . लेकिन हमें तो ऊपर पताका के पास जाना था जहां शिव कुंड है मुसीबत यह थी कि पताका तो ऊपर हमे दिख रही थी लेकिन रास्ता नहीं . एकदम खड़ा पहाड़ ओर ऊपर जाना जरूरी . कहते हैं कि भटके हुए को भगवान् रास्ता दिखाते हैं हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ  , हमें भी एक चट्टान के सहारे रास्ता मिला जो बहुत मुस्किल था. खेर चट्टान पर चले गए उसके आगे देखा एकदम खड़ी चट्टान से रास्ता है ओर उसपे पानी हल्का हल्का चल रहा है. हमेसा बहते पानी के कारण चट्टान पर नीली नीली काई सी जम गयी थी ओर वहां से फिसलने का मतलब सीधा नीचे. हिम्मत करके हम एक पास मे लगे पेड़ का सहारा लेकर ऊपर चले गए . ऊपर जाने पे लगा आज तो मानो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी है. ऊपर छोटा सा शिव मंदिर ओर एक कुंड. (यह भी पड़े :-बिस्तर पर जकड़ी हुई पत्नी की मदद करने के लिए, चेन्नई के युवक ने बनाया अनोखा बिस्तर ;मिला राष्ट्रीय नवप्रवर्तन पुरस्कार जीता)
Shiv


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